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रविवार, 4 मई 2025

पहलगाम की पुकार | Shayari on Pahalgam Attack | Pahalgam Terror Attack | Apna Thought |

Pahalgam | Pahalgam Terror Attack | पहलगाम

सपनों के आँगन में लाशें बिछ गईं,
हँसते हुए परिवार उजड़ गए।
सियासी खेल में इंसान,
दरिंदा बनकर खून से धरती सींच गए।

कौन सा मज़हब सिखाता है ये?
कि मासूमों की जान का सौदा हो।
कश्मीर किसका है—ये सवाल नहीं,
जवाब है, जहाँ ज़िंदा दिलों का भरोसा हो।

जिन आँखों ने बचपन में सिर्फ खिलौने देखे,
आज वही आँखें बारूदों की लकीरें पढ़ती हैं।
क्या दोष था उनका, जो लौट ना सके,
जिनकी चिताओं से अब हवा भी डरती है।

प्रत्येक चीख एक गवाही है,
इंसाफ की जो राह तकती है।
प्रतिकार हमें भी करना होगा,
क्योंकि चुप रहना अब कायरता की निशानी है।

शायद फिर कोई उजड़ जाए इस प्रयास में,
मगर ज़रूरी है इन वहशियों को सज़ा मिले।
निष्पाप जो बेवजह मारे गए,
उनके लिए अपना थोड़ा खून बहाना ज़रूरी है।
 
-Anayankoor

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